प्रकाश (Light) – संपूर्ण अध्याय
प्रकाश (Light) का परिचय
प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में संचरित होती है। यह वह ऊर्जा है, जो हमारी आँखों को किसी वस्तु को देखने में सहायता प्रदान करती है। प्रकाश तरंगों का तरंगदैर्ध्य लगभग 3900 Å से 7800 Å के बीच होता है।
- प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में संचरित होती है। इसका ज्ञान हमें आँखों द्वारा प्राप्त होता है। इसका तरंगदैर्ध्य 3,900 Å से 7,800 Å के बीच होता है।
- सन 1637 में डकार्टे ने प्रकाश के कणिका मॉडल प्रस्तुत किया तथा स्नेल के नियम को व्युत्पन्न किया।
- सन 1678 में डच भौतिक विद्वान क्रिश्चियन हाइगेंस ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत को प्रस्तुत किया। जब थॉमस यंग ने सन 1801 में अपना व्यतिकरण संबंधी प्रसिद्ध प्रयोग किया तब यह निश्चित रूप से प्रमाणित हो गया कि वास्तव में प्रकाश की प्रकृति तरंगगत है।
- सन 1850 में फूको द्वारा किए प्रयोगों द्वारा यह दिखाया गया कि जल में प्रकाश की चाल वायु में प्रकाश की चाल से कम है। इस प्रकार तरंग मॉडल की प्रामाणिकता (Prediction of the wave model) की पुष्टि हो गई।
- प्रकाश तरंगें निर्वात में कैसे संचरित हो सकती हैं, इसकी व्याख्या जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (स्कॉटलैंड) द्वारा प्रकाश संबंधी प्रसिद्ध विद्युत चुंबकीय सिद्धांत प्रस्तुत करने पर ही पाई। मैक्सवेल के अनुसार प्रकाश तरंगें परिवर्तनशील विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्रों से संबंधित हैं। परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र समय तथा दिक-स्थान (आकाश) में परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है तथा परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र समय तथा दिक-स्थान में परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। परिवर्तनशील विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र निर्वात में भी विद्युत चुंबकीय तरंगें (प्रकाश तरंगें) संरचित कर सकते हैं।
- विद्युत चुंबकीय तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं। अतः प्रकाश भी अनुप्रस्थ तरंगें हैं। प्रकाश का ध्रुवण सिद्ध करता है कि प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं।
- प्रकाश के कुछ गुण ऐसे हैं जिनकी व्याख्या तरंग-सिद्धांत नहीं कर पाता है, जैसे – प्रकाश-विद्युत प्रभाव तथा कॉम्पटन-सिद्धांत।
- प्रकाश-विद्युत प्रभाव एवं कॉम्पटन सिद्धांत की व्याख्या आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश के फोटॉन सिद्धांत द्वारा की जाती है। वास्तव में यह दोनों प्रभाव प्रकाश की कण प्रकृति को प्रकट करते हैं।
- प्रकाश का फोटॉन सिद्धांत : इसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बंडलों या पैकेटों के रूप में चलता है, जिन्हें फोटॉन कहते हैं।
- आज प्रकाश की कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ में कण माना जाता है। इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकृति कहते हैं।
- प्रकाश के वेग की गणना सबसे पहले रोमर ने की थी।
- वायु व निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक 3 × 108 m/s होती है।
- प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनांक (μ) पर निर्भर करता है। जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना अधिक होता है, उसमें प्रकाश की चाल उतनी ही कम होती है।
- प्रकाश का विद्युत चुंबकीय तरंग-सिद्धांत प्रकाश के केवल कुछ गुणों की व्याख्या कर पाता है, जैसे – प्रकाश का परावर्तन, प्रकाश का अपवर्तन, प्रकाश का सीधी रेखा में गमन, प्रकाश का विवर्तन, प्रकाश का व्यतिकरण एवं प्रकाश का ध्रुवण।
प्रकाश और उसकी विशेषताएँ
प्रकाश हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह ऊर्जा का एक रूप है, जो वस्तुओं को देखने में सहायता करता है। प्रकाश की विभिन्न विशेषताओं के आधार पर इसे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और घटनाओं से जोड़ा जाता है। इस अध्याय में हम प्रदीप्त वस्तुएं, अप्रदीप्त वस्तुएं, पारदर्शक वस्तुएं, अर्ध-पारदर्शक वस्तुएं, प्रकाश का विवर्तन, प्रकाश का प्रकीर्णन, और प्रकाश का परावर्तन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. प्रदीप्त वस्तुएं (Luminous Objects)
वे वस्तुएं जो स्वयं प्रकाश उत्पन्न करती हैं, प्रदीप्त वस्तुएं कहलाती हैं। ये वस्तुएं अपने प्रकाश के कारण अन्य वस्तुओं को देखने में सहायक होती हैं।
उदाहरण:
- सूर्य
- दीपक
- टॉर्च
- जलती हुई मोमबत्ती
- बिजली का बल्ब
प्रदीप्त वस्तुएं मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं:
- प्राकृतिक प्रदीप्त वस्तुएं: सूर्य, तारे, जुगनू, आदि।
- कृत्रिम प्रदीप्त वस्तुएं: बल्ब, ट्यूबलाइट, मोमबत्ती, आदि।
2. अप्रदीप्त वस्तुएं (Non-Luminous Objects)
वे वस्तुएं जो स्वयं प्रकाश उत्पन्न नहीं करतीं, बल्कि अन्य स्रोतों से प्रकाश प्राप्त कर उसे परावर्तित करती हैं, अप्रदीप्त वस्तुएं कहलाती हैं।
उदाहरण:
- चंद्रमा
- पेड़-पौधे
- मेज-कुर्सी
- मनुष्य
- पुस्तक
चंद्रमा स्वयं प्रदीप्त नहीं है, बल्कि सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर चमकता है। इसलिए यह अप्रदीप्त वस्तु का उदाहरण है।
3. पारदर्शक वस्तुएं (Transparent Objects)
वे वस्तुएं जिनसे प्रकाश पूरी तरह से गुजर जाता है, पारदर्शक वस्तुएं कहलाती हैं। इन वस्तुओं के आर-पार देखा जा सकता है।
उदाहरण:
- कांच
- स्वच्छ पानी
- हवा
पारदर्शक वस्तुओं का उपयोग मुख्य रूप से खिड़कियों, लेंस, चश्मे और वैज्ञानिक उपकरणों में किया जाता है।
4. अर्ध-पारदर्शक वस्तुएं (Translucent Objects)
वे वस्तुएं जो प्रकाश को आंशिक रूप से गुजरने देती हैं, लेकिन इसके आर-पार वस्तुएं स्पष्ट रूप से नहीं देखी जा सकतीं, अर्ध-पारदर्शक वस्तुएं कहलाती हैं।
उदाहरण:
- धुंधला कांच
- ट्रेसिंग पेपर
- कोहरा
- तेल से सना कागज
अर्ध-पारदर्शी वस्तुएं प्रकाश को फैलाती हैं, जिससे इनसे गुजरने वाला प्रकाश बिखर जाता है।
5. प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light)
जब प्रकाश किसी छोटे छिद्र या पतली दरार से गुजरता है और थोड़ा सा मुड़ जाता है, तो इसे प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।
विवर्तन की विशेषताएँ:
- यह प्रभाव तब स्पष्ट रूप से दिखता है जब प्रकाश बहुत संकीर्ण छिद्र से गुजरता है।
- विवर्तन के कारण छायाओं के किनारे स्पष्ट नहीं होते, बल्कि धुंधले दिखाई देते हैं।
उदाहरण:
- किसी बंद कमरे में दरवाजे के छोटे छेद से आने वाला प्रकाश हल्का फैल जाता है।
- सौर और चंद्र ग्रहण में देखने योग्य किनारों पर प्रकाश का फैलाव।
6. प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)
जब प्रकाश की किरणें किसी माध्यम में उपस्थित सूक्ष्म कणों से टकराकर चारों दिशाओं में बिखर जाती हैं, तो इसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं।
प्रकीर्णन के प्रभाव:
- आसमान का नीला रंग
- सूर्यास्त और सूर्योदय के समय आकाश का लाल रंग
- कोहरे में गाड़ियों की रोशनी का फैलना
उदाहरण:
- आसमान का नीला रंग: वायुमंडल में छोटे कण नीले रंग के प्रकाश को अधिक बिखेरते हैं, जिससे आकाश नीला दिखाई देता है।
- सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लालिमा: इस समय सूर्य की किरणें लंबी दूरी तय करती हैं, जिससे नीला और हरा प्रकाश बिखर जाता है और लाल रंग प्रमुखता से दिखाई देता है।
7. प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)
जब प्रकाश किसी सतह से टकराकर अपनी दिशा बदलता है, तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।
परावर्तन के नियम:
- आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब (Normal) सभी एक ही तल में होते हैं।
- आपतन कोण (Angle of Incidence) हमेशा परावर्तन कोण (Angle of Reflection) के बराबर होता है।
प्रकार:
- नियमित परावर्तन:
- जब प्रकाश किसी चिकनी सतह (जैसे दर्पण) से टकराता है और समान कोण पर परावर्तित होता है।
- इससे स्पष्ट प्रतिबिंब बनता है।
- उदाहरण: दर्पण में हमारा प्रतिबिंब।
- अनियमित परावर्तन:
- जब प्रकाश किसी खुरदरी सतह से टकराता है और विभिन्न दिशाओं में बिखर जाता है।
- इससे प्रतिबिंब नहीं बनता, लेकिन वस्तु दिखाई देती है।
- उदाहरण: कागज, दीवार, कपड़ा आदि।
परावर्तन के उपयोग:
- दर्पण: दर्पण में प्रतिबिंब बनता है, जिससे हम स्वयं को देख सकते हैं।
- प्रकाशीय उपकरण: दूरबीन, कैमरा, माइक्रोस्कोप आदि।
- फाइबर ऑप्टिक्स: संचार प्रणाली में प्रकाश के परावर्तन का उपयोग किया जाता है।
समानांतर दर्पण (Plane Mirror) से परावर्तन
- समतल दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है। यह प्रतिबिंब कल्पनिक, वस्तु के बराबर एवं पार्श्व उल्टा (Lateral Inverse) होता है।
- यदि कोई व्यक्ति v चाल से दर्पण की ओर चलता है, तो उसे दर्पण में अपना प्रतिबिंब 2v चाल से अपनी ओर आता हुआ प्रतीत होगा।
- यदि आपतित किरण को नियत रखते हुए दर्पण को θ° कोण से घुमा दिया जाए तो परावर्तित किरण 2θ° से घूम जाती है।
- समतल दर्पण में वस्तु का पूरा प्रतिबिंब देखने के लिए दर्पण की लंबाई वस्तु की लंबाई की कम से कम आधी होनी चाहिए।
प्रतिबिंबों की संख्या निकालने के नियम
यदि दो समतल दर्पण 0° कोण पर झुके हों, तो उनके बीच रखी वस्तु के प्रतिबिंबों की संख्या निम्न प्रकार से की जाती है: प्रतिबिंबों की संख्या = 360/θ – 1
यदि 360° / θ एक विषम संख्या हो तो प्रतिबिंबों की संख्या: n=360°/θ होगी, यदि वस्तु दोनों दर्पणों के बीच के कोण के समद्विभाजक पर नहीं हो।
यदि 360° / θ एक विषम संख्या हो और वस्तु दोनों दर्पणों के बीच के कोण के समद्विभाजक पर रखी हो, तो प्रतिबिंबों की संख्या: n=360°/θ −1 होगी।
यदि 360° / θ एक सम संख्या हो, तो प्रतिबिंबों की संख्या उसके पूर्णांक के बराबर होगी।
गोलीय दर्पण से परावर्तन (Reflection by Spherical Mirrors) – संपूर्ण सारांश
1. गोलीय दर्पण की परिभाषा
वह दर्पण जिसकी परावर्तक सतह किसी गोले का एक भाग होती है, उसे गोलीय दर्पण (Spherical Mirror) कहते हैं।
2. गोलीय दर्पण के प्रकार
- अवतल दर्पण (Concave Mirror) – इसकी परावर्तक सतह अंदर की ओर होती है।
- उत्तल दर्पण (Convex Mirror) – इसकी परावर्तक सतह बाहर की ओर होती है।
3. गोलीय दर्पण के मुख्य घटक
- केंद्र (C – Centre of Curvature) – वह बिंदु जो गोले के केंद्र पर स्थित होता है।
- ध्रुव (P – Pole) – दर्पण के बीच का बिंदु।
- मुख्य अक्ष (Principal Axis) – दर्पण के केंद्र और ध्रुव से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा।
- फोकस (F – Focus) – वह बिंदु जहाँ आपतित किरणें परावर्तन के बाद मिलती या मिलने का आभास देती हैं।
- फोकस दूरी (Focal Length, f) – ध्रुव और फोकस के बीच की दूरी।
4. परावर्तन के नियम (Laws of Reflection)
गोलीय दर्पण पर परावर्तन के नियम समतल दर्पण के नियमों के समान होते हैं:
- आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब (Normal) एक ही तल में होते हैं।
- आपतन कोण (∠i) हमेशा परावर्तन कोण (∠r) के बराबर होता है।
5. विशेष किरण आरेख (Ray Diagrams)
- मुख्य अक्ष के समांतर किरणें – अवतल दर्पण में फोकस से गुजरती हैं; उत्तल दर्पण में ऐसा प्रतीत होता है कि वे फोकस से आ रही हैं।
- फोकस से आने वाली किरणें – अवतल दर्पण में परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती हैं।
- केंद्र से आने वाली किरणें – इन्हें परावर्तन के बाद उसी मार्ग में वापस भेजा जाता है।
- ध्रुव से आने वाली किरणें – यह समान कोण पर परावर्तित होती हैं।
6. छवि निर्माण (Image Formation) – अवतल दर्पण
वस्तु की स्थिति | छवि की प्रकृति |
---|---|
अनंत पर | फोकस पर, वास्तविक, उलटी, अत्यंत लघु |
C पर | C पर, वास्तविक, उलटी, समान आकार |
C और F के बीच | C के परे, वास्तविक, उलटी, बड़ी |
F पर | अनंत पर, वास्तविक, उलटी, अत्यंत बड़ी |
F और P के बीच | आभासी, सीधी, बड़ी |
7. छवि निर्माण – उत्तल दर्पण
- छवि हमेशा आभासी, सीधी और लघु होती है।
- छवि मुख्य रूप से दर्पण के फोकस और ध्रुव के बीच बनती है।
- यह दर्पण पीछे देखने वाले दर्पण (Rear-view mirror) के रूप में प्रयुक्त होता है।
8. गोलीय दर्पण का सूत्र (Mirror Formula)
1/f=1/v−1/u
जहाँ,
- f = फोकस दूरी
- v = छवि दूरी
- u = वस्तु दूरी
9. आवर्धन (Magnification, m)
m=−v/u m=छवि की ऊँचाई / वस्तु की ऊँचाई
- यदि m > 1 → छवि बड़ी होगी।
- यदि m < 1 → छवि छोटी होगी।
- यदि m का मान धनात्मक है → छवि आभासी और सीधी होगी।
- यदि m का मान ऋणात्मक है → छवि वास्तविक और उलटी होगी।
10. गोलीय दर्पण के उपयोग
अवतल दर्पण:
- सर्चलाइट, हेडलाइट, टेलीस्कोप, सौर कुकर, दंत चिकित्सा दर्पण
उत्तल दर्पण: - वाहन के रियर-व्यू मिरर, सुरक्षा दर्पण, सड़क के किनारे लगे दर्पण
उत्तल दर्पण से बने प्रतिबिंब (Image Formation by Convex Mirror)
उत्तल दर्पण (Convex Mirror) एक ऐसा गोलीय दर्पण होता है जिसकी परावर्तक सतह बाहर की ओर होती है। यह दर्पण अपसारी (diverging) होता है, यानी इस पर आने वाली किरणें परावर्तन के बाद अलग-अलग दिशाओं में चली जाती हैं।
उत्तल दर्पण में बनने वाले प्रतिबिंब के गुण
- हमेशा आभासी (Virtual) – प्रतिबिंब कभी वास्तविक नहीं बनता क्योंकि परावर्तित किरणें आपस में मिलती नहीं, बल्कि उनका प्रसार पीछे की ओर होता है।
- हमेशा सीधा (Erect) – प्रतिबिंब उल्टा नहीं बनता, बल्कि सीधा ही रहता है।
- हमेशा लघु (Diminished) – प्रतिबिंब हमेशा वस्तु से छोटा होता है।
- फोकस और ध्रुव के बीच बनता है – प्रतिबिंब हमेशा दर्पण के पीछे, फोकस (F) और ध्रुव (P) के बीच बनता है।
वस्तु की स्थिति के अनुसार प्रतिबिंब
वस्तु की स्थिति | प्रतिबिंब की स्थिति | प्रतिबिंब का आकार | प्रतिबिंब का प्रकार |
---|---|---|---|
अनंत पर | F और P के बीच | अत्यंत छोटा | आभासी, सीधा |
किसी भी दूरी पर | F और P के बीच | वस्तु से छोटा | आभासी, सीधा |
उत्तल दर्पण के विशेष किरण आरेख (Ray Diagrams)
- मुख्य अक्ष के समांतर किरणें – परावर्तन के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि वे फोकस से आ रही हैं।
- केंद्र से आने वाली किरणें – इन्हें परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष से दूर भेजा जाता है।
- ध्रुव से आने वाली किरणें – यह समान कोण पर परावर्तित होती हैं।
उत्तल दर्पण के उपयोग
- वाहनों के रियर-व्यू मिरर में – क्योंकि यह विस्तृत क्षेत्र को दिखाता है और पीछे की वस्तुएं छोटी नजर आती हैं।
- सुरक्षा दर्पण (Security Mirrors) – दुकानों, अस्पतालों, होटलों आदि में निगरानी के लिए।
- सड़क किनारे लगे दर्पण – मोड़ों और अंधे मोड़ (blind turns) पर दृश्यता बढ़ाने के लिए।
प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)
1. अपवर्तन की परिभाषा
जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है और अपने मार्ग को मोड़ लेता है, तो इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light) कहते हैं। यह घटना तब होती है जब प्रकाश की गति माध्यम बदलने के कारण घटती या बढ़ती है।
2. अपवर्तन के कारण
प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर उसकी चाल (Speed) बदल जाती है।
- गति कम होती है – यदि प्रकाश किसी कम अपवर्तक (जैसे वायु) से अधिक अपवर्तक माध्यम (जैसे पानी या कांच) में जाता है, तो वह अपवर्तन के दौरान अभिलंब (Normal) की ओर मुड़ता है।
- गति बढ़ती है – यदि प्रकाश किसी अधिक अपवर्तक (जैसे कांच) से कम अपवर्तक माध्यम (जैसे वायु) में जाता है, तो वह अपवर्तन के दौरान अभिलंब से दूर हटता है।
3. अपवर्तन के नियम (Laws of Refraction)
- पहला नियम – आपतित किरण (Incident Ray), अपवर्तित किरण (Refracted Ray), और अभिलंब (Normal) सभी एक ही समतल में होते हैं।
- दूसरा नियम (स्नेल का नियम – Snell’s Law) – sinisinr=n\frac{\sin i}{\sin r} = n जहाँ,
- i = आपतन कोण (Angle of Incidence)
- r = अपवर्तन कोण (Angle of Refraction)
- n = माध्यम का अपवर्तनांक (Refractive Index)
4. अपवर्तनांक (Refractive Index, n)
किसी माध्यम में प्रकाश की चाल और निर्वात (Vacuum) में प्रकाश की चाल के अनुपात को अपवर्तनांक (Refractive Index) कहते हैं। n=cvn = \frac{c}{v}
जहाँ,
- c = निर्वात में प्रकाश की चाल (3 × 10⁸ m/s)
- v = माध्यम में प्रकाश की चाल
महत्वपूर्ण: यदि n > 1 है, तो प्रकाश की चाल माध्यम में धीमी होगी। यदि n < 1 है, तो प्रकाश की चाल माध्यम में तेज होगी।
माध्यम | अपवर्तनांक (n) |
---|---|
निर्वात (Vacuum) | 1.000 |
वायु (Air) | 1.0003 |
जल (Water) | 1.33 |
काँच (Glass) | 1.5 |
हीरा (Diamond) | 2.42 |
5. प्रकाश के अपवर्तन के प्रभाव
- जल में रखी वस्तुएं उथली लगती हैं – पानी में डूबी वस्तु ऊपरी सतह के करीब दिखाई देती है क्योंकि अपवर्तन के कारण प्रकाश की किरणें मुड़ जाती हैं।
- छोटी जलधाराओं और तालाबों की वास्तविक गहराई से कम गहराई प्रतीत होती है।
- इंद्रधनुष (Rainbow) का निर्माण – अपवर्तन और परावर्तन के कारण प्रकाश विभिन्न रंगों में बंट जाता है।
- सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य बड़ा दिखता है – वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण।
6. पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection – TIR)
जब प्रकाश एक अधिक अपवर्तक माध्यम (जैसे कांच या पानी) से कम अपवर्तक माध्यम (जैसे वायु) में आता है और आपतन कोण एक निश्चित सीमा (क्रांतिक कोण) से अधिक होता है, तो प्रकाश अपवर्तित होने के बजाय पूर्ण रूप से परावर्तित हो जाता है। इसे पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं।
उदाहरण:
- ऑप्टिकल फाइबर (Optical Fiber) में डेटा ट्रांसमिशन
- हीरा चमकने का कारण
- जलाशय में पड़े सिक्के चमकते दिखते हैं
7. प्रकाश के अपवर्तन के उपयोग
- चश्मे और लेंस में – दृष्टि सुधार के लिए।
- कैमरा और माइक्रोस्कोप में – इमेज फोकस करने के लिए।
- आप्टिकल फाइबर – इंटरनेट और संचार प्रणालियों में।
- प्रिज्म – प्रकाश को विभाजित करने के लिए।
प्रकाशिक तंतु (Optical Fiber)
1. परिचय
प्रकाशिक तंतु (Optical Fiber) एक पतली, लचीली और पारदर्शी तंतु (Fiber) होती है, जो कांच (Glass) या प्लास्टिक से बनी होती है। यह प्रकाश संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहुत तेजी और कुशलता से ले जाने के लिए उपयोग की जाती है। इसका आधार पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection – TIR) पर आधारित होता है।
2. संरचना (Structure of Optical Fiber)
एक प्रकाशिक तंतु मुख्य रूप से तीन भागों से मिलकर बना होता है:
- कोर (Core) – यह फाइबर का सबसे अंदरूनी भाग होता है, जिसमें प्रकाश संचरण होता है। इसका अपवर्तनांक अधिक होता है।
- क्लैडिंग (Cladding) – यह कोर के चारों ओर होती है और इसका अपवर्तनांक कोर से कम होता है। यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन सुनिश्चित करता है।
- बाहरी आवरण (Outer Coating या Buffer Coating) – यह तंतु को सुरक्षा प्रदान करता है और बाहरी क्षति से बचाता है।
3. कार्य सिद्धांत (Working Principle)
प्रकाशिक तंतु पूर्ण आंतरिक परावर्तन (TIR) के सिद्धांत पर कार्य करता है। जब प्रकाश किरण कोर में प्रवेश करती है और कोर तथा क्लैडिंग के बीच के सीमा तल पर आपतन कोण क्रांतिक कोण (Critical Angle) से अधिक होता है, तो यह पूरी तरह परावर्तित हो जाती है और फाइबर के अंदर आगे बढ़ती रहती है।
4. प्रकाशिक तंतु के प्रकार (Types of Optical Fiber)
- सिंगल मोड फाइबर (Single Mode Fiber – SMF)
- कोर का व्यास बहुत छोटा (8-10 माइक्रोमीटर) होता है।
- यह केवल एक ही किरण (Mode) को गुजरने देता है।
- लंबी दूरी और उच्च गति के संचार में उपयोगी।
- मल्टी मोड फाइबर (Multi Mode Fiber – MMF)
- कोर का व्यास बड़ा (50-100 माइक्रोमीटर) होता है।
- यह कई किरणों (Modes) को एक साथ संचरित करता है।
- छोटी दूरी के संचार में उपयोग किया जाता है।
5. प्रकाशिक तंतु के लाभ (Advantages of Optical Fiber)
✅ उच्च गति (High Speed) – यह डेटा को बहुत तेजी से ट्रांसमिट कर सकता है।
✅ कम हानि (Low Signal Loss) – सिग्नल लॉस (attenuation) बहुत कम होता है।
✅ विद्युत चुम्बकीय हस्तक्षेप रहित (No Electromagnetic Interference) – विद्युत तरंगों का प्रभाव नहीं पड़ता।
✅ हल्का और लचीला (Lightweight and Flexible) – इसे आसानी से मोड़ा और बिछाया जा सकता है।
✅ सुरक्षित (Secure) – इसमें डेटा हैकिंग की संभावना बहुत कम होती है।
6. प्रकाशिक तंतु के अनुप्रयोग (Applications of Optical Fiber)
- दूरसंचार (Telecommunication) – इंटरनेट, टेलीफोन, और केबल टीवी नेटवर्क में।
- चिकित्सा क्षेत्र (Medical Field) – एंडोस्कोपी, लेजर सर्जरी और माइक्रोस्कोप में।
- सैन्य और सुरक्षा (Military & Defense) – गुप्त संचार प्रणाली में।
- ऑप्टिकल सेंसर (Optical Sensors) – तापमान, दबाव, और कंपन को मापने के लिए।
- औद्योगिक उपयोग (Industrial Applications) – रोबोटिक्स और स्वचालित नियंत्रण प्रणालियों में।
लेंस द्वारा प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light by Lens)
1. लेंस की परिभाषा (Definition of Lens)
लेंस एक पारदर्शी माध्यम (जैसे काँच या प्लास्टिक) से बना होता है, जिसकी कम से कम एक सतह वक्र होती है। जब प्रकाश किसी लेंस से गुजरता है, तो वह अपवर्तित (Refract) होकर अपनी दिशा बदल लेता है।
2. लेंस के प्रकार (Types of Lenses)
मुख्य रूप से लेंस दो प्रकार के होते हैं:
- उत्तल लेंस (Convex Lens) – यह बीच में मोटा और किनारों पर पतला होता है। इसे अभिसारी लेंस (Converging Lens) भी कहते हैं क्योंकि यह आपतित किरणों को एक बिंदु पर लाकर केंद्रित करता है।
- अवतल लेंस (Concave Lens) – यह बीच में पतला और किनारों पर मोटा होता है। इसे अपसारी लेंस (Diverging Lens) भी कहते हैं क्योंकि यह आपतित किरणों को अलग-अलग दिशाओं में मोड़ देता है।
3. लेंस के मुख्य घटक (Main Components of a Lens)
- मुख्य अक्ष (Principal Axis) – लेंस के केंद्र से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा।
- प्रधान फोकस (Focal Point, F) – वह बिंदु जहाँ उत्तल लेंस में अपवर्तित किरणें मिलती हैं और अवतल लेंस में किरणें ऐसे फैलती हैं जैसे वे एक निश्चित बिंदु से आ रही हों।
- फोकस दूरी (Focal Length, f) – लेंस के केंद्र (O) और प्रधान फोकस (F) के बीच की दूरी।
- केंद्र (Optical Center, O) – लेंस का मध्य बिंदु।
4. लेंस में प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light in Lens)
- जब कोई किरण मुख्य अक्ष के समानांतर लेंस पर गिरती है, तो वह अपवर्तन के बाद प्रधान फोकस (F) से गुजरती है (उत्तल लेंस में) या ऐसा प्रतीत होता है कि वह फोकस से आ रही है (अवतल लेंस में)।
- जब कोई किरण फोकस से गुजरती है, तो अपवर्तन के बाद वह मुख्य अक्ष के समानांतर हो जाती है।
- जब कोई किरण केंद्र से गुजरती है, तो वह बिना दिशा बदले आगे बढ़ती है।
5. उत्तल लेंस द्वारा प्रतिबिंब निर्माण (Image Formation by Convex Lens)
वस्तु की स्थिति | प्रतिबिंब की स्थिति | प्रतिबिंब का आकार | प्रतिबिंब का प्रकार |
---|---|---|---|
अनंत पर | फोकस (F) पर | अत्यंत छोटा | वास्तविक, उलटा |
C से परे | C और F के बीच | छोटा | वास्तविक, उलटा |
C पर | C पर | समान आकार | वास्तविक, उलटा |
C और F के बीच | C के परे | बड़ा | वास्तविक, उलटा |
F पर | अनंत पर | अत्यधिक बड़ा | वास्तविक, उलटा |
F और O के बीच | उसी ओर | बड़ा | आभासी, सीधा |
नोट: उत्तल लेंस में F और O के बीच रखी वस्तु का प्रतिबिंब हमेशा आभासी, सीधा और बड़ा बनता है।
6. अवतल लेंस द्वारा प्रतिबिंब निर्माण (Image Formation by Concave Lens)
अवतल लेंस में किसी भी स्थिति में रखी वस्तु का प्रतिबिंब:
✅ हमेशा आभासी (Virtual) होता है।
✅ हमेशा सीधा (Erect) होता है।
✅ हमेशा वस्तु से छोटा (Diminished) होता है।
✅ प्रतिबिंब F और O के बीच बनता है।
7. लेंस का सूत्र (Lens Formula)
1/f=1/v−1/u
जहाँ,
- f = फोकस दूरी
- v = प्रतिबिंब दूरी
- u = वस्तु दूरी
आवर्धन (Magnification, m): m=प्रतिबिंब की ऊँचाई / वस्तु की ऊँचाई = v/u
- यदि m > 1 → प्रतिबिंब बड़ा होगा।
- यदि m < 1 → प्रतिबिंब छोटा होगा।
- यदि m का मान धनात्मक है → प्रतिबिंब आभासी और सीधा होगा।
- यदि m का मान ऋणात्मक है → प्रतिबिंब वास्तविक और उलटा होगा।
8. लेंस के उपयोग (Applications of Lenses)
✅ उत्तल लेंस के उपयोग:
- चश्मों में दूरदृष्टि दोष (Hypermetropia) को ठीक करने के लिए।
- कैमरों और दूरबीनों में इमेज फोकस करने के लिए।
- आवर्धक लेंस (Magnifying Glass) के रूप में।
- माइक्रोस्कोप और टेलीस्कोप में।
✅ अवतल लेंस के उपयोग:
- चश्मों में निकटदृष्टि दोष (Myopia) को ठीक करने के लिए।
- लेजर उपकरणों में।
- कार की हेडलाइट्स में प्रकाश को फैलाने के लिए।
लेंस की क्षमता (Power of Lens)
1. परिभाषा (Definition)
लेंस की क्षमता (Power of a Lens) उस लेंस की प्रकाश किरणों को मोड़ने (अपवर्तन) की क्षमता को दर्शाती है। इसे डायोप्टर (Diopter, D) में मापा जाता है और इसे संख्यात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है।
सूत्र: P=1/f
जहाँ,
- P = लेंस की क्षमता (Power of Lens)
- f = लेंस की फोकस दूरी (Focal Length) (मीटर में)
2. लेंस की क्षमता के नियम
- उत्तल लेंस (Convex Lens) की क्षमता धनात्मक (+) होती है, क्योंकि यह अभिसारी (Converging) लेंस है।
- अवतल लेंस (Concave Lens) की क्षमता ऋणात्मक (-) होती है, क्योंकि यह अपसारी (Diverging) लेंस है।
- यदि लेंस की फोकस दूरी मीटर में दी गई हो, तो उसकी क्षमता डायोप्टर में होगी।
3. लेंस की क्षमता के उदाहरण
फोकस दूरी (f) | लेंस की क्षमता (P = 1/f) | लेंस का प्रकार |
---|---|---|
1 मीटर | +1 D | उत्तल लेंस |
0.5 मीटर | +2 D | उत्तल लेंस |
-0.25 मीटर | -4 D | अवतल लेंस |
-2 मीटर | -0.5 D | अवतल लेंस |
4. मिश्रित लेंस की क्षमता (Power of Combination of Lenses)
यदि दो या अधिक लेंसों को एक साथ रखा जाता है, तो उनकी संयुक्त क्षमता इस प्रकार होगी:
P=P1+P2+P3+…
जहाँ,
- P = कुल क्षमता (Total Power)
- P₁, P₂, P₃… = अलग-अलग लेंसों की क्षमता
उदाहरण:
यदि एक +2D उत्तल लेंस और -1D अवतल लेंस को एक साथ रखा जाए, तो उनकी कुल क्षमता होगी:
P=+2D+(−1D)=+1DP = +2D + (-1D) = +1D
5. लेंस की क्षमता के उपयोग (Applications of Lens Power)
✅ दृष्टि सुधार (Vision Correction): चश्मों की लेंस क्षमता निर्धारित करने के लिए।
✅ आयुर्विज्ञान (Medical Use): माइक्रोस्कोप और एंडोस्कोप में।
✅ फोटोग्राफी (Photography): कैमरा लेंस की क्षमता निर्धारित करने में।
✅ टेलीस्कोप और दूरबीन (Telescopes & Binoculars): लंबी दूरी की वस्तुओं को देखने के लिए।
लेंस की क्षमता में परिवर्तन (Change in Power of Lens)
1. लेंस की क्षमता पर निर्भरता
लेंस की क्षमता (Power, P) निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है: P=1/f
जहाँ,
- P = लेंस की क्षमता (डायोप्टर में)
- f = फोकस दूरी (मीटर में)
लेंस की क्षमता में परिवर्तन मुख्य रूप से फोकस दूरी में परिवर्तन से होता है। यदि फोकस दूरी घटती है, तो क्षमता बढ़ जाती है और यदि फोकस दूरी बढ़ती है, तो क्षमता घट जाती है।
2. लेंस की क्षमता में परिवर्तन के कारण
- विभिन्न माध्यमों में लेंस रखना (Changing the Medium)
- जब कोई लेंस हवा से पानी या कांच जैसे अन्य माध्यमों में रखा जाता है, तो उसका अपवर्तनांक (Refractive Index) बदल जाता है, जिससे फोकस दूरी और क्षमता भी बदलती है।
- उच्च अपवर्तनांक वाले माध्यम में रखने पर फोकस दूरी बढ़ती है, जिससे क्षमता घटती है।
- लेंस की वक्रता में परिवर्तन (Change in Curvature of Lens)
- यदि लेंस की सतहों की वक्रता बढ़ा दी जाए (अधिक घुमावदार बना दिया जाए), तो फोकस दूरी घट जाती है और लेंस की क्षमता बढ़ जाती है।
- कम वक्रता वाले लेंस की क्षमता कम होगी।
- लेंस की मोटाई में परिवर्तन (Change in Thickness of Lens)
- यदि लेंस अधिक मोटा बना दिया जाए, तो उसकी क्षमता बढ़ जाती है।
- पतला लेंस कम क्षमता वाला होगा।
- मिश्रित लेंसों का उपयोग (Combination of Lenses)
- यदि दो या अधिक लेंस एक साथ रखे जाते हैं, तो उनकी कुल क्षमता जोड़कर निकाली जाती है: P=P1+P2+P3+…
- इससे कुल क्षमता में वृद्धि या कमी हो सकती है।
- तापमान का प्रभाव (Effect of Temperature)
- अत्यधिक तापमान बढ़ने से लेंस के पदार्थ का विस्तार हो सकता है, जिससे उसका अपवर्तनांक बदल सकता है और क्षमता प्रभावित हो सकती है।
3. उदाहरण (Examples of Lens Power Change)
स्थिति | फोकस दूरी (f) | लेंस की क्षमता (P = 1/f) |
---|---|---|
सामान्य स्थिति | 0.5 मीटर | +2 D |
पानी में रखने पर | 1 मीटर | +1 D |
अधिक घुमावदार लेंस | 0.25 मीटर | +4 D |
पतले लेंस का उपयोग | 0.75 मीटर | +1.33 D |
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light)
1. परिभाषा (Definition)
जब प्रकाश किसी प्रिज्म (Prism) से होकर गुजरता है, तो वह अपने घटक रंगों में विभाजित हो जाता है। इस घटना को वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light) कहा जाता है।
2. वर्ण-विक्षेपण कैसे होता है?
- सूर्य का सफेद प्रकाश वास्तव में सात रंगों (VIBGYOR) से मिलकर बना होता है:
V – Violet (बैंगनी)
I – Indigo (नील)
B – Blue (नीला)
G – Green (हरा)
Y – Yellow (पीला)
O – Orange (नारंगी)
R – Red (लाल) - जब यह सफेद प्रकाश कांच के प्रिज्म से गुजरता है, तो अलग-अलग रंग अलग-अलग कोणों पर मुड़ते हैं।
- यह विक्षेपण इस कारण होता है क्योंकि प्रत्येक रंग की प्रकाश किरण का अपवर्तनांक (Refractive Index) अलग-अलग होता है।
3. मुख्य कारण (Causes of Dispersion)
✅ प्रकाश के अलग-अलग रंगों का भिन्न अपवर्तनांक: बैंगनी रंग की तरंगदैर्घ्य (Wavelength) सबसे कम होती है, इसलिए यह सबसे ज्यादा झुकता है। लाल रंग की तरंगदैर्घ्य सबसे अधिक होती है, इसलिए यह सबसे कम झुकता है।
✅ माध्यम (Medium) का प्रभाव: यदि प्रकाश हवा से कांच के माध्यम में जाता है, तो अपवर्तन अधिक होगा और विक्षेपण स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।
✅ प्रिज्म का आकार और कोण: प्रिज्म का कोण जितना बड़ा होगा, विक्षेपण उतना अधिक होगा।
4. वर्ण-विक्षेपण का नियम (Law of Dispersion)
- अलग-अलग रंगों के प्रकाश का झुकाव अलग-अलग होता है।
- बैंगनी रंग सबसे अधिक झुकता है, जबकि लाल रंग सबसे कम।
- झुकाव का परिमाण माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है।
5. दैनिक जीवन में वर्ण-विक्षेपण के उदाहरण (Examples of Dispersion in Daily Life)
✅ इंद्रधनुष (Rainbow):
- जब बारिश की बूंदों से सूर्य का प्रकाश गुजरता है, तो पानी की बूंदें प्रिज्म की तरह काम करती हैं और प्रकाश को विभाजित कर देती हैं।
- इससे हमें आसमान में सात रंगों का इंद्रधनुष दिखाई देता है।
✅ सीडी/डीवीडी पर चमकते रंग:
- जब प्रकाश सीडी या डीवीडी की सतह पर पड़ता है, तो वह अलग-अलग रंगों में विभाजित हो जाता है।
✅ साबुन के बुलबुले:
- जब सूर्य का प्रकाश पतले पानी की परत से गुजरता है, तो उसमें भी प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण होता है और रंगीन प्रभाव दिखाई देता है।
✅ हीरे की चमक:
- हीरा एक उच्च अपवर्तनांक वाला पदार्थ है, इसलिए उसमें भी विक्षेपण की वजह से अलग-अलग रंग चमकते हैं।
6. प्रिज्म और लेंस में अंतर
विशेषता | प्रिज्म | लेंस |
---|---|---|
अपवर्तन का कार्य | प्रकाश को मोड़ता है और विक्षेपित करता है | प्रकाश को केंद्रित (Focus) करता है |
विक्षेपण करता है? | हाँ, प्रकाश को सात रंगों में विभाजित करता है | नहीं, केवल अपवर्तन करता है |
इंद्रधनुष (Rainbow) – प्राथमिक और द्वितीयक इंद्रधनुष
1. इंद्रधनुष क्या है?
इंद्रधनुष एक प्राकृतिक प्रकाशीय घटना है, जो तब बनती है जब सूर्य का प्रकाश वर्षा की बूंदों में अपवर्तित (Refracted), परावर्तित (Reflected) और विक्षेपित (Dispersed) होकर सात रंगों में विभाजित हो जाता है।
मुख्य रंग (VIBGYOR):
- V – Violet (बैंगनी)
- I – Indigo (नील)
- B – Blue (नीला)
- G – Green (हरा)
- Y – Yellow (पीला)
- O – Orange (नारंगी)
- R – Red (लाल)
2. प्राथमिक (Primary) इंद्रधनुष
कैसे बनता है?
- जब सूर्य का प्रकाश वर्षा की बूंदों में प्रवेश करता है, तो अपवर्तन (Refraction) होता है।
- प्रकाश बूंद के अंदर एक बार परावर्तित (Reflection) होकर बाहर आता है।
- बाहर निकलते समय यह वर्ण-विक्षेपण (Dispersion) के कारण सात रंगों में बंट जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
✅ सबसे अधिक चमकीला और स्पष्ट होता है।
✅ इसका रंग क्रम लाल (बाहर) से बैंगनी (अंदर) होता है।
✅ सूर्य और पर्यवेक्षक के बीच 42° कोण पर बनता है।
3. द्वितीयक (Secondary) इंद्रधनुष
कैसे बनता है?
- कुछ किरणें बूंद के अंदर दो बार परावर्तित (Double Internal Reflection) होती हैं।
- इससे प्रकाश अधिक बंटता है और दूसरा, कम स्पष्ट इंद्रधनुष बनता है।
मुख्य विशेषताएँ:
✅ यह प्राथमिक इंद्रधनुष के ऊपर बनता है।
✅ इसका रंग क्रम बैंगनी (बाहर) से लाल (अंदर) होता है (रंग क्रम उल्टा होता है)।
✅ यह कम चमकीला होता है क्योंकि प्रकाश की अधिक मात्रा फैल जाती है।
✅ यह 50–53° कोण पर बनता है।
4. प्राथमिक और द्वितीयक इंद्रधनुष का अंतर
विशेषता | प्राथमिक इंद्रधनुष | द्वितीयक इंद्रधनुष |
---|---|---|
बनने का कारण | एक बार आंतरिक परावर्तन | दो बार आंतरिक परावर्तन |
रंग क्रम | लाल बाहर, बैंगनी अंदर | बैंगनी बाहर, लाल अंदर |
चमक | अधिक चमकीला | कम चमकीला |
बनने का कोण | 42° | 50-53° |
5. इंद्रधनुष से जुड़े कुछ मजेदार तथ्य:
✅ इंद्रधनुष हमेशा सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।
✅ केवल गोलाकार पानी की बूंदों से इंद्रधनुष बनता है।
✅ यदि आप हवाई जहाज से देखें, तो इंद्रधनुष पूरा गोल दिख सकता है।
✅ कभी-कभी तृतीयक (Tertiary) और चतुर्थ (Quaternary) इंद्रधनुष भी बन सकते हैं, लेकिन वे बहुत दुर्लभ होते हैं
प्राथमिक, द्वितीयक और पूरक रंग
रंगों को उनकी उत्पत्ति और मिश्रण के आधार पर तीन मुख्य वर्गों में बांटा जाता है:
- प्राथमिक रंग (Primary Colors)
- द्वितीयक रंग (Secondary Colors)
- पूरक रंग (Complementary Colors)
1. प्राथमिक रंग (Primary Colors)
परिभाषा:
वे रंग जो किसी अन्य रंग के मिश्रण से नहीं बनाए जा सकते, बल्कि अन्य रंग इन्हीं से बनते हैं।
प्रकार:
(A) प्रकाश के प्राथमिक रंग (Additive Primary Colors) – RGB Model
- लाल (Red)
- हरा (Green)
- नीला (Blue)
✔️ जब इन तीन रंगों को मिलाया जाता है, तो सफेद प्रकाश बनता है।
✔️ यह रंग टीवी स्क्रीन, कंप्यूटर मॉनिटर और डिजिटल डिस्प्ले में उपयोग किए जाते हैं।
(B) वर्णक (पिगमेंट) के प्राथमिक रंग (Subtractive Primary Colors) – CMY Model
- सियान (Cyan – हल्का नीला)
- मैजेंटा (Magenta – गुलाबी बैंगनी)
- पीला (Yellow)
✔️ यह रंग पेंटिंग, प्रिंटिंग और पिगमेंट आधारित माध्यमों में उपयोग होते हैं।
✔️ जब इन्हें मिलाया जाता है, तो काला रंग बनता है।
2. द्वितीयक रंग (Secondary Colors)
परिभाषा:
वे रंग जो दो प्राथमिक रंगों के मिश्रण से बनते हैं।
(A) प्रकाश के द्वितीयक रंग (RGB Model)
प्राथमिक रंगों का मिश्रण | बनने वाला द्वितीयक रंग |
---|---|
लाल + हरा | पीला (Yellow) |
लाल + नीला | मैजेंटा (Magenta) |
हरा + नीला | सियान (Cyan) |
(B) वर्णक के द्वितीयक रंग (CMY Model)
प्राथमिक रंगों का मिश्रण | बनने वाला द्वितीयक रंग |
---|---|
सियान + मैजेंटा | नीला (Blue) |
सियान + पीला | हरा (Green) |
मैजेंटा + पीला | लाल (Red) |
3. पूरक रंग (Complementary Colors)
परिभाषा:
वे रंग जो एक-दूसरे के विपरीत होते हैं और जब मिलते हैं, तो सफेद या काला रंग बनाते हैं।
RGB मॉडल में पूरक रंग
- लाल (Red) ↔ सियान (Cyan)
- हरा (Green) ↔ मैजेंटा (Magenta)
- नीला (Blue) ↔ पीला (Yellow)
CMY मॉडल में पूरक रंग
- सियान (Cyan) ↔ लाल (Red)
- मैजेंटा (Magenta) ↔ हरा (Green)
- पीला (Yellow) ↔ नीला (Blue)
✔️ पूरक रंगों का उपयोग डिजाइन, पेंटिंग, ग्राफिक्स, फैशन और आर्ट में किया जाता है।
✔️ जब पूरक रंग एक साथ उपयोग किए जाते हैं, तो वे एक-दूसरे को उभारते (Contrast) हैं।
प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Light Waves)
1. व्यतिकरण क्या है? (What is Interference?)
जब दो या अधिक प्रकाश तरंगें आपस में मिलती हैं, तो वे एक-दूसरे को मजबूत या कमजोर कर सकती हैं। इस घटना को व्यतिकरण (Interference) कहा जाता है।
2. व्यतिकरण के प्रकार (Types of Interference)
1️⃣ सहवर्धी (रचनात्मक) व्यतिकरण (Constructive Interference)
- जब दो तरंगें समान फेस (Same Phase) में होती हैं, तो वे आपस में जुड़कर एक अधिक तीव्र (Bright) प्रकाश क्षेत्र बनाती हैं।
- इसका कारण तरंगों की धाराओं का जोड़ना होता है।
- यह तब होता है जब तरंगों के बीच पथांतर (Path Difference) शून्य या पूर्ण तरंग लंबाई (λ,2λ,3λ …) हो।
उदाहरण: जब दो तरंगें मिलकर उजले स्थान (Bright Fringe) का निर्माण करती हैं।
2️⃣ नाशक (विनाशात्मक) व्यतिकरण (Destructive Interference)
- जब दो तरंगें विपरीत फेस (Opposite Phase) में होती हैं, तो वे एक-दूसरे को कमजोर या नष्ट कर देती हैं।
- इससे एक अंधकारमय (Dark) क्षेत्र बनता है।
- यह तब होता है जब पथांतर λ/2,3λ/2,5λ/2 … के बराबर होता है।
उदाहरण: जब दो तरंगें मिलकर अंधेरे स्थान (Dark Fringe) का निर्माण करती हैं।
3. यंग का द्विचिद्र प्रयोग (Young’s Double Slit Experiment – YDSE)
यंग के इस प्रसिद्ध प्रयोग ने प्रकाश की तरंग प्रकृति को सिद्ध किया।
✅ प्रयोग की विधि:
- एक प्रकाश स्रोत से प्रकाश को दो संकीर्ण चिद्रों (Slits) से गुजरने दिया जाता है।
- दोनों चिद्रों से गुजरने के बाद तरंगें आपस में व्यतिकरण करती हैं।
- स्क्रीन पर अंधेरे और उजले स्थानों का क्रमबद्ध पैटर्न (Interference Pattern) बनता है।
✅ मुख्य अवलोकन (Observations):
- जहाँ सहवर्धी व्यतिकरण होता है, वहाँ उजला स्थान बनता है।
- जहाँ नाशक व्यतिकरण होता है, वहाँ अंधेरा स्थान बनता है।
- यह पैटर्न प्रकाश की तरंग प्रकृति को सिद्ध करता है।
4. व्यतिकरण की शर्तें (Conditions for Interference)
1️⃣ दोनों प्रकाश स्रोत संगत (Coherent) होने चाहिए, अर्थात उनकी तरंगदैर्घ्य (Wavelength) और आवृत्ति (Frequency) समान होनी चाहिए।
2️⃣ दोनों तरंगों की ध्रुवण अवस्था (Phase) स्थिर होनी चाहिए।
3️⃣ स्रोतों से निकलने वाली तरंगें एक ही दिशा में प्रसारित होनी चाहिए।
5. व्यतिकरण के दैनिक जीवन में उदाहरण (Examples in Daily Life)
✅ तेल की परत पर रंगीन प्रभाव: जब पतली तेल की परत पर प्रकाश पड़ता है, तो परावर्तन के कारण अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं।
✅ साबुन के बुलबुले में चमकीले रंग: बुलबुले की पतली परत पर प्रकाश के व्यतिकरण से रंग दिखाई देते हैं।
✅ संगीत वाद्ययंत्रों में ध्वनि व्यतिकरण: कुछ विशेष स्थानों पर ध्वनि तेज (लाउड) और कुछ स्थानों पर धीमी (फीकी) सुनाई देती है।
✅ एंटी-रिफ्लेक्शन कोटिंग: चश्मों और कैमरा लेंस पर कोटिंग की जाती है ताकि अनचाही चमक (Glare) को रोका जा सके।
प्रकाश तरंगों का ध्रुवण (Polarization of Light Waves)
1. ध्रुवण क्या है? (What is Polarization?)
ध्रुवण वह प्रक्रिया है, जिसमें किसी तरंग (जैसे प्रकाश) के दोलनों (vibrations) को एक विशेष दिशा में सीमित कर दिया जाता है। सामान्य अप्रकाशित (Unpolarized) प्रकाश में दोलन सभी दिशाओं में होते हैं, लेकिन ध्रुवण के बाद ये केवल एक ही दिशा में होते हैं।
2. प्रकाश के ध्रुवण का कारण
प्रकाश एक अनुप्रस्थ (Transverse) तरंग है, जिसका कंपन (Vibration) विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों में दो लंबवत दिशाओं में होता है। जब इसे ध्रुवित किया जाता है, तो केवल एक दिशा में कंपन करने वाली तरंगें गुजरने दी जाती हैं, जबकि अन्य नष्ट हो जाती हैं।
3. ध्रुवण के प्रकार (Types of Polarization)
1️⃣ रेखीय ध्रुवण (Linear Polarization):
- इसमें प्रकाश तरंगें केवल एक निश्चित दिशा में दोलन करती हैं।
- यह ध्रुवणशील शीशों (Polaroid Filters) या परावर्तन से प्राप्त होता है।
2️⃣ वृत्तीय ध्रुवण (Circular Polarization):
- इसमें विद्युत क्षेत्र दो लंबवत दिशाओं में इस प्रकार दोलन करता है कि एक सर्पिल (Spiral) पैटर्न बनता है।
- यह तब होता है जब प्रकाश की दो तरंगें 90° के अंतर और समान तीव्रता के साथ चलती हैं।
3️⃣ दीर्घवृत्तीय ध्रुवण (Elliptical Polarization):
- यह वृत्तीय ध्रुवण का एक सामान्य रूप है, जिसमें विद्युत क्षेत्र दीर्घवृत्तीय मार्ग (Elliptical Path) में गति करता है।
- यह तब बनता है जब दो तरंगें अलग-अलग तीव्रता के साथ होती हैं।
4. प्रकाश के ध्रुवण की विधियाँ (Methods of Polarization)
विधि | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
संकेतक ध्रुवण (Polarization by Selective Absorption) | कुछ सामग्री विशेष दिशा में कंपन करने वाली तरंगों को अवशोषित कर लेती है। | Polaroid Sunglasses |
परावर्तन द्वारा ध्रुवण (Polarization by Reflection) | जब प्रकाश किसी सतह से परावर्तित होता है, तो यह جزوی रूप से ध्रुवित हो जाता है। | ग्लास, पानी पर परावर्तित प्रकाश |
अपवर्तन द्वारा ध्रुवण (Polarization by Refraction) | जब प्रकाश किसी द्वि-वर्णी पदार्थ (Birefringent Material) से गुजरता है, तो दो अलग-अलग ध्रुवित तरंगें बनती हैं। | कैल्साइट क्रिस्टल (Calcite Crystal) |
प्रकीर्णन द्वारा ध्रुवण (Polarization by Scattering) | जब प्रकाश वातावरण में धूल और गैस के कणों से टकराता है, तो यह आंशिक रूप से ध्रुवित हो जाता है। | आकाश का नीला रंग |
5. ध्रुवण के दैनिक जीवन में उपयोग (Applications of Polarization in Daily Life)
✅ सनग्लासेस (Sunglasses): परावर्तित चमक (Glare) को कम करने के लिए ध्रुवित लेंस उपयोग किए जाते हैं।
✅ कैमरा फिल्टर्स: अधिक स्पष्ट और चमक रहित तस्वीरें लेने के लिए ध्रुवण फिल्टर्स का उपयोग किया जाता है।
✅ 3D मूवीज: स्टीरियोस्कोपिक इफेक्ट बनाने के लिए ध्रुवण तकनीक का उपयोग किया जाता है।
✅ भूगर्भीय अध्ययन: खनिजों और क्रिस्टलों के अध्ययन में उपयोग होता है।
✅ टीवी और LCD स्क्रीन: ये ध्रुवण के सिद्धांत पर आधारित होती हैं।
✅ रेडियो और संचार: ध्रुवण का उपयोग रेडियो तरंगों और मोबाइल नेटवर्क में सिग्नल स्पष्ट करने के लिए किया जाता है।
मानव नेत्र (Human Eye)
मानव नेत्र एक जटिल प्रकाश-संवेदी अंग है, जो हमें देखने और रंगों व वस्तुओं को पहचानने में मदद करता है। यह एक गोलाकार संरचना होती है, जो प्रकाश को ग्रहण कर उसे मस्तिष्क तक पहुंचाने का कार्य करती है।
1. मानव नेत्र की संरचना (Structure of the Human Eye)
मानव नेत्र की मुख्य भाग निम्नलिखित हैं:
(A) बाहरी संरचना (External Structure)
1️⃣ नेत्रगोलक (Eyeball): यह लगभग 2.5 सेमी व्यास का होता है और कंकाल में कक्षीय गह्वर (Orbital Cavity) में स्थित होता है।
2️⃣ नेत्रपटल (Eyelid): यह आंख को धूल, प्रकाश और अन्य हानिकारक तत्वों से बचाती है।
3️⃣ नेत्राश्रु ग्रंथि (Lacrimal Gland): यह आँसू उत्पन्न करती है, जो आंखों को नम और संक्रमण से बचाते हैं।
4️⃣ नेत्र पेशियाँ (Eye Muscles): ये आंखों की गति को नियंत्रित करती हैं।
(B) आंतरिक संरचना (Internal Structure)
संरचना | कार्य |
---|---|
कॉर्निया (Cornea) | यह पारदर्शी बाहरी सतह होती है, जो प्रकाश को नेत्रगोलक में प्रवेश कराती है और अपवर्तन में सहायता करती है। |
परितारिका (Iris) | यह नेत्र का रंगीन भाग होता है, जो नेत्रद्वार (Pupil) के आकार को नियंत्रित करता है। |
नेत्रद्वार (Pupil) | यह आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करता है। |
लेंस (Lens) | यह उभयावर्त (Convex) लेंस होता है, जो प्रकाश को अपवर्तित कर रेटिना पर फोकस करता है। |
रेटिना (Retina) | यह आंख का सबसे संवेदनशील भाग होता है, जिसमें प्रकाश-संवेदनशील कोशिकाएं (Rods और Cones) होती हैं। |
दृष्टि तंत्रिका (Optic Nerve) | यह नेत्र से मस्तिष्क तक संकेत भेजती है। |
रक्त वाहिकाएँ (Blood Vessels) | यह आंखों को पोषण और ऑक्सीजन प्रदान करती हैं। |
2. नेत्र की कार्यप्रणाली (Working of the Eye)
1️⃣ प्रकाश कॉर्निया से होकर प्रवेश करता है और अपवर्तित होता है।
2️⃣ यह प्रकाश पुतली (Pupil) से गुजरता है, जिसकी चौड़ाई परितारिका (Iris) नियंत्रित करती है।
3️⃣ प्रकाश फिर लेंस (Lens) से होकर गुजरता है, जो इसे रेटिना (Retina) पर फोकस करता है।
4️⃣ रेटिना पर स्थित रॉड (Rod) और कोन (Cone) कोशिकाएँ इस प्रकाश को विद्युत संकेतों में बदलती हैं।
5️⃣ ये संकेत ऑप्टिक तंत्रिका (Optic Nerve) द्वारा मस्तिष्क तक पहुंचाए जाते हैं, जिससे हमें वस्तु दिखाई देती है।
3. नेत्र से संबंधित महत्वपूर्ण संकल्पनाएँ (Key Concepts Related to the Eye)
(A) समायोजन (Accommodation)
यह वह प्रक्रिया है जिसमें नेत्र का लेंस अपनी वक्रता (Curvature) को बदलकर पास और दूर की वस्तुओं पर फोकस करता है।
✔️ दूर की वस्तु देखने पर – लेंस पतला हो जाता है।
✔️ पास की वस्तु देखने पर – लेंस मोटा हो जाता है।
(B) रॉड और कोन कोशिकाएँ (Rod & Cone Cells)
- रॉड कोशिकाएँ (Rods): यह कम रोशनी (Dim Light) में देखने में मदद करती हैं और काले-सफेद में दृष्टि प्रदान करती हैं।
- कोन कोशिकाएँ (Cones): यह रंगों को पहचानने और उज्ज्वल रोशनी में देखने में मदद करती हैं।
4. नेत्र दोष (Eye Defects)
नेत्र दोष | कारण | सुधार |
---|---|---|
निकट दृष्टि दोष (Myopia) | दूर की वस्तुएं धुंधली दिखती हैं, क्योंकि प्रकाश रेटिना के आगे फोकस होता है। | अवतल (Concave) लेंस से |
दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia) | पास की वस्तुएं धुंधली दिखती हैं, क्योंकि प्रकाश रेटिना के पीछे फोकस होता है। | उत्तल (Convex) लेंस से |
जरा दृष्टि दोष (Presbyopia) | उम्र बढ़ने के कारण लेंस की लचीलेपन में कमी आ जाती है। | द्विफोकसी (Bifocal) लेंस से |
रंग-अंधता (Color Blindness) | कोन कोशिकाओं की समस्या के कारण कुछ रंगों की पहचान नहीं हो पाती। | कोई उपचार नहीं |
अंधता (Blindness) | रेटिना या दृष्टि तंत्रिका में क्षति। | सर्जरी या कृत्रिम नेत्र |
5. नेत्र की देखभाल (Eye Care Tips)
✅ प्रतिदिन हरी सब्जियाँ, विटामिन A युक्त आहार लें।
✅ अत्यधिक मोबाइल और कंप्यूटर स्क्रीन का उपयोग करने से बचें।
✅ पढ़ाई करते समय पर्याप्त रोशनी रखें।
✅ नियमित रूप से आंखों की जांच कराएँ।
✅ धूप के चश्मे (Sunglasses) पहनें ताकि UV किरणों से बचाव हो।
सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी (Microscope & Telescope)
सूक्ष्मदर्शी और दूरदर्शी दोनों ही प्रकाशीय यंत्र हैं, जिनका उपयोग वस्तुओं को बड़ा और स्पष्ट देखने के लिए किया जाता है। सूक्ष्मदर्शी बहुत छोटे (सूक्ष्म) वस्तुओं को देखने के लिए, जबकि दूरदर्शी बहुत दूर स्थित वस्तुओं को देखने के लिए उपयोग किया जाता है।
1. सूक्ष्मदर्शी (Microscope)
परिभाषा:
सूक्ष्मदर्शी वह यंत्र है, जिसका उपयोग छोटे जीवाणु, कोशिकाएँ, ऊतक आदि को देखने के लिए किया जाता है।
प्रकार:
1️⃣ सरल सूक्ष्मदर्शी (Simple Microscope): इसमें केवल एक उत्तल लेंस होता है, जो वस्तु को बड़ा करके दिखाता है।
2️⃣ यौगिक सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope): इसमें दो लेंस होते हैं – ऑब्जेक्टिव लेंस (Objective Lens) और आंखीय लेंस (Eyepiece Lens), जो वस्तु का कई गुना बड़ा प्रतिबिंब बनाते हैं।
संरचना (Structure of a Compound Microscope):
- ऑब्जेक्टिव लेंस: यह वस्तु के पास रखा जाता है और उसका वास्तविक, उल्टा एवं बड़ा प्रतिबिंब बनाता है।
- आंखीय लेंस (Eyepiece): यह ऑब्जेक्टिव लेंस द्वारा बनाए गए प्रतिबिंब को और बड़ा करके दिखाता है।
- दर्पण (Mirror): यह प्रकाश को वस्तु पर केंद्रित करता है।
- चुंबक एवं धातु फ्रेम: यह सूक्ष्मदर्शी को स्थिर रखता है।
सूक्ष्मदर्शी की विशेषताएँ:
✅ यह छोटे से छोटे जीवाणु या कोशिका को स्पष्ट दिखा सकता है।
✅ इसका उपयोग बायोलॉजी, मेडिकल रिसर्च, फॉरेंसिक साइंस में किया जाता है।
2. दूरदर्शी (Telescope)
परिभाषा:
दूरदर्शी वह यंत्र है, जिसका उपयोग अंतरिक्ष, ग्रहों, तारों और अन्य दूर स्थित वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है।
प्रकार:
1️⃣ अपवर्तक दूरदर्शी (Refracting Telescope): इसमें दो उत्तल लेंस होते हैं, जो दूर की वस्तुओं का बड़ा प्रतिबिंब बनाते हैं।
2️⃣ परावर्तक दूरदर्शी (Reflecting Telescope): इसमें एक अवतल दर्पण और एक लेंस होता है, जो प्रकाश को केंद्रित कर बड़ा प्रतिबिंब बनाता है।
3️⃣ रेडियो दूरदर्शी (Radio Telescope): यह रेडियो तरंगों को ग्रहण कर ब्रह्मांडीय वस्तुओं का अध्ययन करता है।
संरचना (Structure of a Refracting Telescope):
- उद्दीपन लेंस (Objective Lens): यह प्रकाश को इकट्ठा करके वस्तु का उल्टा प्रतिबिंब बनाता है।
- आंखीय लेंस (Eyepiece Lens): यह प्रतिबिंब को बड़ा करके दिखाता है।
- लंबी ट्यूब: यह प्रकाश को सीधा रखती है और प्रतिबिंब बनने में मदद करती है।
दूरदर्शी की विशेषताएँ:
✅ यह बहुत दूर स्थित ग्रहों और तारों को देखने में सहायक होता है।
✅ इसका उपयोग खगोल विज्ञान (Astronomy) और वैज्ञानिक अनुसंधान में किया जाता है।
3. सूक्ष्मदर्शी और दूरदर्शी में अंतर
अंतर का आधार | सूक्ष्मदर्शी | दूरदर्शी |
---|---|---|
उद्देश्य | बहुत छोटे जीवाणु, कोशिकाएँ देखने के लिए | दूर स्थित ग्रहों, तारों को देखने के लिए |
लेंस की संख्या | दो (ऑब्जेक्टिव लेंस और आंखीय लेंस) | दो (ऑब्जेक्टिव लेंस और आंखीय लेंस) |
वस्तु की स्थिति | वस्तु पास होती है | वस्तु बहुत दूर होती है |
प्रतिबिंब का प्रकार | बड़ा, वास्तविक, उल्टा | बड़ा, सीधा या उल्टा |
प्रकाशीय यंत्र | अपवर्तक लेंस प्रणाली | अपवर्तक या परावर्तक लेंस प्रणाली |
उदाहरण | बायोलॉजी लैब में कोशिका अध्ययन | हबल टेलीस्कोप, गैलीलियो टेलीस्कोप |
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope)
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope) एक प्रकाशीय यंत्र है, जिसका उपयोग बहुत छोटे जीवों, कोशिकाओं, बैक्टीरिया, और अन्य सूक्ष्म वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है। इसमें दो या अधिक लेंस होते हैं, जो वस्तु का अत्यधिक आवर्धन (Magnification) कर उसे स्पष्ट दिखाते हैं।
1. संरचना (Structure of Compound Microscope)
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं:
(A) प्रकाशीय भाग (Optical Parts)
भाग | कार्य |
---|---|
ऑब्जेक्टिव लेंस (Objective Lens) | यह वस्तु के पास स्थित होता है और उसका वास्तविक, उल्टा और आवर्धित प्रतिबिंब बनाता है। |
आंखीय लेंस (Eyepiece Lens) | यह ऑब्जेक्टिव लेंस द्वारा बनाए गए प्रतिबिंब को और अधिक बड़ा करके दिखाता है। |
दर्पण (Mirror) | यह बाहरी प्रकाश को लेंसों की ओर परावर्तित करता है, जिससे वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है। |
संघेदी संचालक (Condenser) | यह प्रकाश को केंद्रित कर ऑब्जेक्टिव लेंस की ओर भेजता है, जिससे प्रतिबिंब अधिक स्पष्ट बनता है। |
डायफ्राम (Diaphragm) | यह प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करता है। |
(B) यांत्रिक भाग (Mechanical Parts)
भाग | कार्य |
---|---|
आधार (Base) | यह सूक्ष्मदर्शी को स्थिर रखता है। |
हथेली (Arm) | यह लेंस और अन्य भागों को सहारा देता है। |
मंच (Stage) | जिस पर वस्तु-स्लाइड रखी जाती है। |
मोटा समायोजन पेंच (Coarse Adjustment Knob) | यह ऑब्जेक्टिव लेंस को ऊँचा-नीचा कर स्पष्टता बढ़ाता है। |
सूक्ष्म समायोजन पेंच (Fine Adjustment Knob) | यह प्रतिबिंब को अधिक स्पष्ट करने के लिए बारीक समायोजन करता है। |
2. कार्यप्रणाली (Working of Compound Microscope)
1️⃣ प्रकाश दर्पण (Mirror) से परावर्तित होकर संघेदी संचालक (Condenser) से गुजरता है।
2️⃣ संघेदी संचालक यह प्रकाश वस्तु पर केंद्रित करता है।
3️⃣ ऑब्जेक्टिव लेंस वस्तु का एक बड़ा, वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब बनाता है।
4️⃣ यह प्रतिबिंब आंखीय लेंस द्वारा और अधिक बड़ा किया जाता है।
5️⃣ इस प्रकार हमें एक बड़ा, स्पष्ट और उल्टा प्रतिबिंब दिखाई देता है।
3. आवर्धन (Magnification in Compound Microscope)
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का कुल आवर्धन (Total Magnification) निम्नलिखित सूत्र से निकाला जाता है: कुल आवर्धन=ऑब्जेक्टिव लेंस का आवर्धन×आंखीय लेंस का आवर्धन
उदाहरण:
यदि ऑब्जेक्टिव लेंस का आवर्धन 40× और आंखीय लेंस का आवर्धन 10× हो, तो कुल आवर्धन: 40×10=400X
इसका अर्थ है कि वस्तु 400 गुना बड़ी दिखाई देगी।
4. विशेषताएँ (Features of Compound Microscope)
✔️ यह 2,000X तक आवर्धन कर सकता है।
✔️ यह सूक्ष्म जीवों, कोशिकाओं और बैक्टीरिया को देखने में सहायक होता है।
✔️ इसका उपयोग बायोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल साइंस और फॉरेंसिक साइंस में किया जाता है।
5. उपयोग (Uses of Compound Microscope)
✅ कोशिका अध्ययन (Cell Study): जीवों की कोशिकाओं और ऊतकों की संरचना देखने में मदद करता है।
✅ बैक्टीरिया और वायरस का अध्ययन: माइक्रोबायोलॉजी में बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीवों की पहचान के लिए।
✅ मेडिकल रिसर्च: रक्त कोशिकाओं और अन्य शारीरिक ऊतकों की जाँच के लिए।
✅ फॉरेंसिक विज्ञान: अपराध जांच में उपयोग।
✅ जीवाणु विज्ञान (Bacteriology): संक्रमण और रोगों की पहचान में सहायक।
भौतिकी के अध्याय | लिंक |
---|---|
मात्रक | Click Here |
गति | Click Here |
कार्य ऊर्जा एवं शक्ति | Click Here |
गुरुत्वाकर्षण | Click Here |
दाब | Click Here |
प्लवन | Click Here |
पृष्ठ तनाव | Click Here |
श्यानता | Click Here |
प्रत्यास्थता | Click Here |
सरल आवर्त सारणी | Click Here |
तरंग | Click Here |
ध्वनि तरंग | Click Here |
ऊष्मा | Click Here |
प्रकाश | Click Here |
स्थिर वैद्युत | Click Here |
चुंबकत्व | Click Here |
परमाणु भौतिकी | Click Here |
रेडियो सक्रियता | Click Here |
नाभिकीय विखंडन और संलयन | Click Here |
ब्रह्मांड | Click Here |
वैज्ञानिक उपकरण | Click Here |
भौतिक संबंधी महत्वपूर्ण खोज | Click Here |
मात्रकों का एक पद्धति से दूसरे पद्धति में परिवर्तन | Click Here |
नाप तोल की विभिन्न मात्रक | Click Here |
विभिन्न यंत्रों एवं उपकरणों के आविष्कारक | Click Here |